5 साल पहले 10 करोड़ के चुनावी चंदे को लेकर टाटा और मिस्त्री में शुरू हुई थी तकरार

नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल ने सायरस मिस्त्री को दोबारा टाटा सन्स का चेयरमैन बनाने का फैसला दिया है। ट्रिब्यूनल ने बुधवार को अपने फैसले में कहा- टाटा सन्स के चेयरमैन पद से मिस्त्री को हटाना गैरकानूनी था। टाटा सन्स के पास इसके खिलाफ अपील करने का विकल्प है। इस कानूनी लड़ाई से पहले भी ऐसे मसले थे, जिन्हें लेकर मिस्त्री और रतन टाटा के बीच मतभेद हुए।


पहला मुद्दा: 10 करोड़ रुपए का चुनावी चंदा
चुनावी चंदा पहला मुद्दा था, जिसको लेकर रतन टाटा ने मिस्त्री और उनकी टीम से नाखुशी जाहिर की थी। 2014 में मिस्त्री के एक करीबी सलाहकार ने ओडिशा विधानसभा चुनाव में 10 करोड़ रुपए का चंदा देने का प्रस्ताव दिया था। इसके पक्ष में दलील दी गई कि राज्य में टाटा के पास बड़े लौह अयस्क भंडार हैं। इस पर रतन टाटा की तरफ से बोर्ड में नामांकित सदस्यों ने आपत्ति जताई। उनका कहना था कि टाटा समूह हमेशा से लोकसभा चुनाव में फंडिंग करता रहा है। यह भी केवल ट्रस्ट के जरिए किया जाता है। हालांकि, ओडिशा को चंदा देने का प्रस्ताव पास नहीं हुआ, लेकिन रतन टाटा ने ऐसा प्रस्ताव लाने पर ही आपत्ति जताई। उनका कहना था कि सायरस मिस्त्री यह जानते थे कि इससे समूह की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचेगी।


दूसरा मुद्दा: सेना के लिए 60 हजार करोड़ रुपए के टेंडर


एक बोर्ड मेंबर के मुताबिक, इस साल टाटा समूह ने दो टेंडर डाले, जिसमें भारतीय सेना के लिए 60 हजार करोड़ रुपए की लागत से 2,600 आधुनिक हलके युद्धक वाहन खरीदे जाने थे। टाटा स्ट्रेटेजिक इक्विपमेंट डिवीजन (एसईडी) ने टीटागढ़ वैगन्स के साथ और टाटा मोटर्स ने भारत फोर्ज के साथ संयुक्त उपक्रम के तौर पर टेंडर डाले। रतन टाटा ने कहा- दो की बजाय एक टेंडर डालना चाहिए था, क्योंकि दो अलग-अलग टेंडर से टाटा समूह के नाम का मजाक उड़ रहा है। हालांकि, अभी तक सेना ने इस टेंडर के बारे में फैसला नहीं किया है।


तीसरा: अमेरिकी फूड चेन से समझौता
अमेरिकी फूड चेन को लेकर रतन टाटा और सायरस मिस्त्री के बीच तल्खी बढ़ गई थी। टाटा सन्स की बोर्ड मीटिंग में अमेरिकी फूड चेन 'लिटिल सीजर्स' के साथ समझौते का प्रस्ताव लाया गया था। रतन टाटा इतने छोटे मुद्दे को बोर्ड के सामने लाने से बेहद असहज हो गए। उन्होंने कहा- जब इस तरह के मामलों में फैसला करने के लिए कंपनी में दूसरे लोग मौजूद हैं तो इसे बोर्ड के सामने लाने की जरूरत नहीं थी। इस तरह के कदम से कंपनी की प्रतिष्ठा धूमिल होती है। सायरस मिस्त्री के करीबियों का कहना था कि जब टाटा ने एक अन्य कॉफी चेन स्टारबक्स के साथ समझौता किया था, तो इस तरह का मामला बोर्ड के सामने लाने में कुछ भी गलत नहीं है।


इन तीन मामलों के अलावा, टाटा और वैल्सपन के संयुक्त उपक्रम टाटा-डोकोमो मोबाइल सर्विस में जापान के साथ मतभेद और रतन टाटा के ड्रीम प्रोजेक्ट नैनो कार को बंद करने के फैसलों ने भी दोनों की बीच दूरियां बढ़ाईं।


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